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शनिवार, 20 जून 2020

वीरता की महत्ता

!!!---: बेला और कल्याणी  :---!!!
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"बेला" पृथ्वीराज चौहान की पुत्री थी और "कल्याणी" जयचंद की पौत्री. जैसा कि हम सभी जानते ही है कि - अजमेर के राजा प्रथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयचन्द आपस में रिश्तेदार (मौसेरे भाई) थे. उनके नाना दिल्ली के राजा अनंगपाल ने दिल्ली का राज प्रथ्वीराज को सौंप दिया था इस बजह से जयचंद प्रथ्वीराज से ईर्ष्या करता था.

इसके अलावा जयचन्द की पत्नी की भतीजी संयोगिता (जिसे जयचन्द अपनी बेटी की तरह स्नेह करता था) का प्रथ्वीराज से प्रेम हो जाने और प्रथ्वीराज द्वारा संयोगिता का हरण कर ले जाने के कारण यह ईर्ष्या दुश्मनी में बदल गई थी. इन कारणों से जयचन्द किसी भी तरह से प्रथ्वीराज चौहान को समाप्त करना चाहता था.

उन दिनों में अफगान लुटेरा मोहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने भारत पर आक्रमण किया था जिसमे प्रथ्वीराज चौहान की सेना के साथ सभी भारतीय हिन्दू राजाओं ने साथ दिया था. इस लड़ाई में मोहम्मद गौरी को बंदी बना लिया गया था तब वह कुरआन की कसम खाकर माफी मांग कर अपनी जान बचाकर वापस गया था.

गौरी का एक आदमी (मोइनुद्दीन चिश्ती) जो तंत्र मन्त्र में माहिर था वह अजमेर में रह कर संत की तरह एक मंदिर के बाहर बैठकर जासूसी का काम करेने लगा. जब उसको प्रथ्वीराज और जयचंद की दुश्मनी का पता चला तो उसने जयचन्द को समझाया कि - अगर तुम गौरी का साथ दो तो तुमको दिल्ली की सत्ता मिल सकती है.

जयचन्द उसकी बातों में आ गया क्योंकि तब तक जितने भी इस्लामी हम्लाबर भारत में आये थे वे केवल लूटमार करके वापस चले गए थे कोई भी भारत में राज करने के लिए नहीं रुका था. गौरी के फिर भारत पर हमले के समय जयचन्द ने न केवल गौरी का साथ दिया बल्कि अपने मित्र राजाओं को भी प्रथ्वीराज का साथ देने से रोका ।


उस लड़ाई में प्रथ्वीराज की हार हुई और गौरी प्रथ्वीराज को बंदी बनाकर अपने साथ अफगानिस्तान ले गया. जयचंद को लगता था कि उसे अब दिल्ली का राजा बनाया जाएगा उस जयचंद के मोहम्मद गौरी से जीत का ईनाम मांगने पर उसकी यह कहकर गरदन काट दी गई कि - जो अपनों का नहीं हुआ वह हमारा क्या होगा.

जिस संयोगिता के हरण को जयचन्द ने अपनी इज्ज़त का प्रश्न बनाया था उस संयोगिता को चिश्ती के कहने पर पूर्ण नग्न करके सैनिको के सामने फेंक दिया गया था. गौरी ने भारत की सत्ता अपने गुलाम कुतुबुद्दीन और बख्तियार खिलजी को सौंप दी और प्रथ्वीराज को बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया. साथ में भरत की हजारों महिलाओं को भी ले गया.

उन स्त्रीयों में प्रथ्वीराज की चचेरी बहन  "बेला" और जयचन्द की पौत्री "कल्याणी" भी थी. मोहम्मद गौरी ने अपनी जीत के तोहफे के रूप में बेला और कल्याणी को गजनी के सर्वोच्च काजी निजामुल्क को देने का ऐलान कर दिया. इस घटना पर बने एक नाटक में बोले गए गौरी और काजी निजामुल्क के संवाद को भी यहाँ लिखना प्रासंगिक समझता हूँ.

गौरी ने काजी निजामुल्क से कहा - ‘‘काजी साहब! मैं हिन्दुस्तान से सत्तर करोड़ दिरहम मूल्य के सोने के सिक्के, पचास लाख चार सौ मन सोना और चांदी, इसके अतिरिक्त मूल्यवान आभूषणों, मोतियों, हीरा, पन्ना, जरीदार वस्त्रा और ढाके की मल-मल की लूट-खसोट कर भारत से गजनी की सेवा में लाया हूं’’

इस पर गौरी की तारीफ करते हुए काजी ने पूछा - ‘‘बहुत अच्छा! लेकिन वहां के लोगों को कुछ दीन-ईमान का पाठ पढ़ाया कि नहीं?’’

गौरी ने कहा - ‘‘बहुत से लोग इस्लाम में दीक्षित हो गए हैं’’ कुतुबुद्दीन, बख्तियार और चिश्ती वहीँ है और वे बुतपरस्ती को ख़त्म करने और इस्लाम का प्रचार करने में लगे हुए हैं

‘‘और वहां से लाये गए दासों और दासियों का क्या किया?’’

दासों को गुलाम बनाकर गजनी लाया गया है. अब तो गजनी में बंदियों की सार्वजनिक बिक्री की जा रही है. रौननाहर, इराक, खुरासान आदि देशों के व्यापारी गजनी से गुलामों को खरीदकर ले जा रहे हैं. एक-एक गुलाम दो-दो या तीन-तीन दिरहम में बिक रहा है.’’

‘‘हिन्दुस्तान के मंदिरों का क्या किया?’’

‘‘मंदिरों को लूटकर 17000 हजार सोने और चांदी की मूर्तियां लायी गयी हैं, दो हजार से अधिक कीमती पत्थरों की मूर्तियां और शिवलिंग भी लाए गये हैं और बहुत से पूजा स्थलों को नेप्था और आग से जलाकर जमीदोज कर दिया गया है।’’

‘‘वाह! अल्हा मेहरबान तो गौरी पहलवान’’ फिर मंद-मंद मुस्कान के साथ बड़बड़ाए, ‘‘गौरे और काले, धनी और निर्धन गुलाम बनने के प्रसंग में सभी भारतीय एक हो गये हैं जो भारत में प्रतिष्ठित समझे जाते थे, आज वे गजनी में मामूली दुकानदारों के गुलाम बने हुए हैं’’ फिर थोड़ा रुककर कहा, ‘‘लेकिन हमारे लिए कोई खास तोहफा लाए हो या नहीं?’’

‘‘लाया हूं ना काजी साहब!’’

‘‘क्या?’’

‘‘जन्नत की हूरों से भी सुंदर जयचंद की पौत्री कल्याणी और पृथ्वीराज चौहान की पुत्री बेला’’

‘‘तो फिर देर किस बात की है।’’

‘‘बस आपके इशारे भर की’’

और काजी की इजाजत पाते ही शाहबुद्दीन गौरी ने कल्याणी और बेला को काजी के हरम में पहुंचा दिया. कल्याणी और बेला की अद्भुत सुंदरता को देखकर काजी अचम्भे में आ गया, उसे लगा कि स्वर्ग से अप्सराएं आ गयी हैं. उसने दोनों राजकुमारियों (बेला और कल्याणी) से इस्लाम कबूलने और उससे निकाह करने का प्रस्ताव रखा.

बेला और कल्याणी भी समझ चुकी थी कि - अब बचना असंभव है इसलिए उन्होंने एक खतरनाक चाल चली. बेला ने काजी से कहा -‘‘काजी साहब! आपकी बेगमें बनना तो हमारी खुशकिस्मती होगी, लेकिन हमारी दो शर्तें हैं’’

‘‘कहो..कहो.. क्या शर्तें हैं तुम्हारी! तुम जैसी हूरों के लिए तो मैं कोई भी शर्त मानने के लिए तैयार हूं।

‘‘पहली शर्त से तो यह है कि शादी होने तक हमें अपवित्र न किया जाए और दुसरी शर्त है कि - हमारी परम्परा के अनुसार दूल्हा और दुल्हन का जोड़ा हमारी पसंद का और भारत से मंगबाया जाए. इस पर काजी ने खुश होकर कहा - ‘‘मुझे तुम्हारी दोनों शर्तें मंजूर हैं’’

फिर बेला और कल्याणी ने कविचंद के नाम एक रहस्यमयी खत लिखकर भारत भूमि से शादी का जोड़ा मंगवा लिया. काजी के साथ उनके निकाह का दिन निश्चित हो गया. रहमत झील के किनारे बनाये गए नए महल में विवाह की तैयारी शुरू हुई कवि चंद द्वारा भेजे गये कपड़े पहनकर काजी साहब विवाह मंडप में आए.

कल्याणी, बेला और काजी ने भी भारत से आये हुए कपड़े पहन रखे थे. शादी को देखने के लिए बाहर जनता की भीड़ इकट्ठी हो गयी थी. तभी बेला ने काजी साहब से कहा-‘‘हमारे होने वाले सरताज! हम कलमा और निकाह पढ़ने से पहले जनता को झरोखे से दर्शन देना चाहती हैं, क्योंकि विवाह से पहले जनता को दर्शन देने की हमारे यहां प्रथा है ।

और फिर गजनी वालों को भी तो पता चले कि आप बुढ़ापे में जन्नत की सबसे सुंदर हूरों से शादी रचा रहे हैं. शादी के बाद तो हमें जीवनभर बुरका पहनना ही है, तब हमारी सुंदरता का होना न के बराबर ही होगा. नकाब में छिपी हुई सुंदरता भला तब किस काम की।’’

स्वाध्यायः

‘‘हां..हां..क्यों नहीं’’ काजी ने उत्तर दिया और कल्याणी और बेला के साथ राजमहल के कंगूरे पर गया, लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते ही काजी साहब के दाहिने कंधे से आग की लपटें निकलने लगी, क्योंकि क्योंकि कविचंद ने बेला और कल्याणी का रहस्यमयी पत्र समझकर बड़े तीक्ष्ण विष में सने हुए कपड़े भेजे थे ।

वैदिक संस्कृत

काजी साहब विष की ज्वाला से पागलों की तरह इधर-उधर भागने लगा, तब बेला ने उससे कहा-‘‘तुमने ही गौरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए उकसाया था ना, हमने तुझे मारने का षड्यंत्र रचकर अपने देश को लूटने का बदला ले लिया है. हम हिन्दू कुमारियां हैं समझे, किसमें इतना साहस है जो जीते जी हमारे शरीर को हाथ भी लगा दे’’

आर्ष दृष्टि

कल्याणी ने कहा, ‘नालायक ! बहुत मजहबी बनते हो, अपने धर्म को शांतिप्रिय धर्म बताते हो और करते हो क्या? जेहाद का ढोल पीटने के नाम पर लोगों को लूटते हो और शांति से रहने वाले लोगों पर जुल्म ढाहते हो, थू! धिक्कार है तुम पर ।’


इतना कहकर दोनों राजकुमारियों ने महल की छत के किनारे खड़ी होकर एक-दूसरी की छाती में विष बुझी कटार जोर से भोंक दी और उनके प्राणहीन देह उस उंची छत से नीचे लुढ़क गये. पागलों की तरह इधर-उधर भागता हुआ काजी भी तड़प-तड़प कर मर गया ।


भारत की इन दोनों बहादुर बेटियों ने विदेशी धरती पर पराधीन रहते हुए भी बलिदान की जिस गाथा का निर्माण किया, वह सराहने योग्य है आज सारा भारत इन बेटियों के बलिदान को श्रद्धा के साथ याद करता है. यह कहानी स्कूली इतिहास की किताबों में नहीं मिलेगी लेकिन यह बहुत मशहूर लोककथा है जिसपर मेलों में अक्सर नाटक खेला जाता है ।

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

भारत का गौरवशाली इतिहास

भारत स्वाभिमान के सभी सम्मान्नीय बहनों भाइयों, भारत देश का भूतकाल कैसा था, अतीत कैसा था, इसके बारे में मुझे आपसे कुछ बात कहनी है. पूज्य स्वामी जी का उसके लिए निर्देश है. मैं उसके लिए आपके सामने कुछ प्रमाण प्रस्तुत करूंगा, उन प्रमाणों के आधार पर हम सब उस बात का अंदाजा लगा लेंगे, आकलन कर लेंगे की भारत का अतीत कैसा था भारत का इक अतीत तो है जो बहुत पुराना है वेदों के समय का है वेद कालीन है और वह दसवीं शताब्दी तक चलता है वेदों के समय से ले कर दसवीं शताब्दी तक का, परम पूजनीय स्वामी जी ने उसके बारे में आपसे जरूर बात की होगी. मैं आपको भारत के उस अतीत के बारे में बात करूंगा जो अभी हाल में हमारे सामने रहा  १५० – २०० साल पहले तक अठारहवीं शताब्दी तक सत्रहवीं शताब्दी तक सोलहवीं शताब्दी तक, पंद्रहवीं शताब्दी तक माने आज से लगभग १०० – १५० साल पहले से शुरू कर के और पिछले हजार साल का जो भारत का इतिहास है कैसा है वह उसके बारे में थोड़ी सी बात करूंगा. और इक जानकारी आपको स्पष्टता के लिए देना चाहता हूँ, वह ये कि भारत के इतिहास पर भारत के अतीत पर दुनिया भर के २०० से ज्यादा विद्वान इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत ज्यादा शोध किया बहुत शोध किया, और दुनिया भर के ये २०० से ज्यादा विद्वान शोधकर्ता इतिहास के विशेषज्ञ भारत के बारे में क्या कहते रहे है, इनमें से कुछ विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा. सभी विशेषज्ञों का रखना बड़ा मुश्किल है क्योंकि २०० विशेषज्ञों का काफी समय जाएगा लेकिन उसमें से जो प्रमुख है मुख्य है वैसे ८ – १० विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूंगा, और ये सारे विशेषज्ञ भारत से बहार के है कुछ अंग्रेज है, कुछ सकोटीश है, कुछ अमरीकन है कुछ फ्रेंच है, कुछ जर्मन है. ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा है, लिखा है और उसके जो प्रमाण दिए है उन पर बात मुझे कहनी है सबसे पहले है इक अंग्रेज की जानकारी मैं आपको दूं उसका नाम है थामस बेव मैकाले, टी बी मैकाले जिसको हम कहते है. ये भारत में आया करीब १७ वर्ष देश में रहा सबसे ज्यादा जो अंग्रेज अधिकारी इस भारत में रहें उनमें से इसकी गिनती होती है मैकाले की और जब वह भारत में रहा तो भारत का काफी उसने प्रवास किया, यात्रा  की, उत्तर भारत में गया, दक्षिण भारत में गया, पूर्वी भारत में गया पश्चिमी भारत में गया और अपने सत्रह साल के भारत के प्रवास के बाद वह इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट में हाउस ऑफ कॉमन्स उसने इक लम्बा भाषण दिया उस भाषण का थोड़ा सा अंश परम पूजनीय स्वामी जी द्वारा लिखित जो पुस्तक है “शंखनाद” उसमें आप पढ़ सकते है, और वह अंश है और ये कह रहा है ब्रिटिश पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कॉमन्स में “आई हेव ट्रावेल्ड लेंथ एंड ब्रेथ ऑफ दिस कंट्री इंडिया बट आई हेव नेवर सीन ए बेगर एंड थीफ इन दिस कंट्री इंडिया”. इसका मतलब क्या है ? वह ये कह रहा है की मैं सम्पूर्ण भारत में प्रवास कर चूका हु, उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम में मैं जा चूका हु, लेकिन मैंने कभी भी अपनी आँखों से भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा – जो चोर हो, एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं देखा – जो बेरोजगार हो, एक भी व्यक्ति मैंने ऐसा नहीं देखा – जो गरीब हो, ये बात आप ध्यान दीजिएगा, वह २ फरवरी सन १८३५ को कह रहा है माने आज से अगर ये हम जोड़ेंगे तो लगभग १६०, १७० साल पहले वह ये बोल रहा है, कि एक भी व्यक्ति भारत में गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, चोर नहीं है. वह यह कह रहा है इसका माने की भारत में गरीबी नहीं थी बेरोजगारी नहीं थी और चोरी कोई क्यों करेगा जब कोई गरीब नहीं है, बेरोजगार नहीं है, फिर आगे के वाक्य में वह और बड़ी बात कह रहा है वह कह रहा है “आई हवे सीन सच वेल्थ इन दिस कंट्री इंडिया देट वी कैन नोट इमेजिन टू कोंक्वेर्ड टू दिस कंट्री इंडिया. वह कहता है की भारत में इतना धन और इतनी संपत्ति और इतना वैभव मैंने देखा है कि इन भारतवासियों को गुलाम बनाना बहुत मुश्किल काम है. ये आसन नहीं है. क्यों ? वह खुद कहता है कि जो लोग बहुत पैसे वाले होते है समृद्ध शाली होते है बहुत अमीर होते है वह लोग जल्दी किसी के गुलाम नहीं होते. इसलिए भारतवासी हमारे गुलाम हो जाएँगे ये मुझे बहुत मुश्किल लगता है , और फिर वह अगले भाषण में वह बहुत लम्बी बात कहता है भारत की शिक्षा, भारत की संस्कृति भारत की सभ्यता के बारे में. मैं उस बात को आगे नहीं ले जाना चाहता, फिर प्रमाण के रूप में २ फरवरी १८३५ को दिए गए उसके भाषण के ये २ – ३ वाक्य है, जो हमारे ध्यान में आने चाहिए कि भारत में एक अंग्रेज घूम रहा है और कह रहा है कही कोई गरीब नहीं है कोई बेरोजगार नहीं है किसी को चोरी करने की भारत में जरूरत नहीं है इसका माने भारत कुछ काफी समृद्ध शाली देश है फिर इसी भाषण के अंत में मैकाले एक वाक्य और कहता है उसको मैं सीधे सुनाता हु, वह कहता है कि भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया तो मैंने देखा कि वहां सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता है जैसे की चने का या गेहूँ का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है माने सामान्य घरों से ले कर विशिष्ट घरों तक सबके पास सोने के सिक्के इतनी अधिक मात्रा में होते है कि वह ढेर लगा कर उन सिक्को को रखते है. और वह कह रहा है कि भारतवासी कभी इन सिक्कों को गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नहीं होती है इसलिए वह तराजू में तोल कर रखते है. किसी के घर में १०० किलो सोना होता है किसी के घर में २०० किलो होता है किसी के घर में ५०० किलो होता है इस तरह से सोने का हमारे भारत के घरों में भंडार भरा हुआ है, ये एक प्रमाण मैकाले का भाषण ब्रिटेन की संसद में २ फरवरी १८३५ को. इसके बाद इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हु,
एक अंग्रेज इतिहासकार हुआ उसका नाम है विलियम डिग्बी, ये बहुत बड़ा इतिहासकार माना जाता है इंग्लैंड में, अंग्रेज लोग इसकी बहुत इज्जत करते है, इसका बहुत सन्मान करते है, और ना सिर्फ अंग्रेज इसका सन्मान करते है इज्जत करते है बल्कि  यूरोप के सभी देशों में विलियम डिग्बी का बहुत सन्मान है बहुत इज्जत है, अमरीका में भी इसकी बहुत सन्मान और बहुत इज्जत है कारण क्या है, विलियम डिग्बी के बारे में कहा जाता है की वह बिना प्रमाण के कोई बात नहीं कहता और बिना दस्तावेज के बिना सबूत के वह कुछ लिखता नहीं है. इसलिए इसकी इज्जत पूरे यूरोप और अमरीका में है. वह विलियम डिग्बी भारत के बारे में एक बड़ी पुस्तक लिखा है उस पुस्तक का एक थोड़ा सा अंश मैं सुनाता हु आपको. उसने तो ये अँग्रेज़ी में लिखा है मैं इसे हिंदी कर के बताता हु. विलियम डिग्बी कहता है की अंग्रेजो के पहले का भारत विश्व का सर्व सम्पन्न कृषि प्रधान देश ही नहीं बल्कि ये सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश भी था अंग्रेजो से पहले का भारत खाली खेती वाला भारत नहीं था कृषि वाला भारत नहीं था वह औद्योगिक और व्यापारिक देश भारत था जो सर्वश्रेष्ठ था उसके शब्द पर गौर कीजिएगा वह कह रहा है सर्वश्रेष्ठ माने दुनिया में भारत के मुकाबले उस ज़माने में कोई भी देश नहीं था. और ये बात वह कब कह रहा है सत्रहवी शताब्दी में वह कह रहा है माने आज से अगर हम गिनना शुरु करे तो लगभग ३०० साल पहले के भारत के बारे में विलियम डिग्बी कह रहा है की सारी दुनिया के देशों में भारत औद्योगिक रूप से व्यापारिक रूप से और कृषि के रूप में सर्वश्रेष्ठ देश है माने कृषि उत्पादन हमारा सबसे अच्छा है औद्योगिक उत्पादन दुनिया में सबसे ज्यादा है और व्यापार भी हम दुनिया में सबसे ज्यादा करते है. उसके आगे वह कहता है कि भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी दुनिया के किसी देश में नहीं फिर आगे कहता है  कि भारत के व्यापारी इतने ज्यादा होशियार है जो दुनिया के किसी देश में नहीं फिर वह आगे कहता है की भारत जो के कारीगर हाथ से जो कपड़ा बनाते है उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य कई वस्तुए पूरे विश्व के बाजार में बिक रही है और इन वस्तुओ को भारत के व्यापारी जब बेचते है तो बदले में इन वस्तुओ के वह सोना और चांदी की मांग करते है जो सारी दुनिया के दूसरे व्यापारी आसानी के साथ भारतवासिओ के व्यापारियो को दे देते है.

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रविवार, 27 नवंबर 2016

विद्युत् के आविष्कारक

!!!---: विद्युत् के आविष्कारक :---!!!
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ऋषि अगस्त्य का परिचय
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अगस्त्य एक वैदिक ॠषि थे। तमिलनाडु में इनको अगतियार कहा जाता है । ये वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। इनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (तदनुसार ३००० ई.पू.) को काशी में हुआ था। वर्तमान में वह स्थान अगस्त्यकुंड के नाम से प्रसिद्ध है। इनकी पत्नी लोपामुद्रा विदर्भ देश की राजकुमारी थी। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। देवताओं के अनुरोध पर इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे।

दक्षिण भारत में अगस्त्य तमिल भाषा के आद्य वैय्याकरण हैं। यह कवि शूद्र जाति में उत्पन्न हुए थे इसलिए यह 'शूद्र वैयाकरण' के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह ऋषि अगस्त्य के ही अवतार माने जाते हैं। ग्रंथकार के नाम परुनका यह व्याकरण 'अगस्त्य व्याकरण' के नाम से प्रख्यात है। तमिल विद्वानों का कहना है कि यह ग्रंथ पाणिनि की अष्टाध्यायी के समान ही मान्य, प्राचीन तथा स्वतंत्र कृति है जिससे ग्रंथकार की शास्त्रीय विद्वता का पूर्ण परिचय उपलब्ध होता है।



भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उनके विशिष्ट योगदान के लिए जावा, सुमात्रा आदि में इनकी पूजा की जाती है। महर्षि अगस्त्य वेदों में वर्णित मंत्र-द्रष्टा मुनि हैं। इन्होंने आवश्यकता पड़ने पर कभी ऋषियों को उदरस्थ कर लिया था तो कभी समुद्र भी पी गये थे ।

विद्युत् का आविष्कार
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बिजली का आविष्कार थॉमस एडिसन ने नहीं, बल्कि महर्षि अगस्त्य ने किया था ।
ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की।

इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं-



"संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥"
(अगस्त्य संहिता)

अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका (Copper Sheet) डालें तथा शिखिग्रीवा (Copper sulphate) डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगाएं, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो उससे मित्रावरुणशक्ति (Electricity) का उदय होगा। ये मित्रावरुण ही विद्युत् है ।



"अगस्त्य संहिता" में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग (Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबे या सोने या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली । अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव (Battery Bone) कहते हैं।




महर्षि अगस्त्य के आश्रम
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महर्षि अगस्त्य के भारतवर्ष में अनेक आश्रम हैं। इनमें से कुछ मुख्य आश्रम उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में हैं। एक उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग नामक जिले के अगस्त्यमुनि नामक शहर में है। यहाँ महर्षि ने तप किया था तथा आतापी-वातापी नामक दो असुरों का वध किया था। मुनि के आश्रम के स्थान पर वर्तमान में एक मन्दिर है। आसपास के अनेक गाँवों में मुनि जी की इष्टदेव के रुप में मान्यता है। मन्दिर में मठाधीश निकटस्थ बेंजी नामक गाँव से होते हैं।

दूसरा आश्रम महाराष्ट्र के नागपुर जिले में है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ तथा इनका आश्रम पास ही था। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से श्रीराम ने ऋषियों को सताने वाले असुरों का वध करने का प्रण लिया था (निसिचर हीन करुहुँ महिं)। महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को इस कार्य हेतु कभी समाप्त न होने वाले तीरों वाला तरकश प्रदान किया था।



एक अन्य आश्रम तमिलनाडु के तिरुपति में है। एक मान्यता के अनुसार विंध्याचल जो कि महर्षि का शिष्य था, का घमण्ड बहुत बढ़ गया था तथा उसने अपनी ऊँचाई बहुत बढ़ा दी जिस कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर पहुँचनी बन्द हो गई तथा प्राणियों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने महर्षि से अपने शिष्य को समझाने की प्रार्थना की। महर्षि ने विंध्याचल से कहा कि उन्हें तप करने हेतु दक्षिण में जाना है अतः उन्हें मार्ग दे। विंध्याचल महर्षि के चरणों में झुक गया, महर्षि ने उसे कहा कि वह उनके वापस आने तक झुका ही रहे तथा पर्वत को लाँघकर दक्षिण को चले गये। उसके पश्चात वहीं आश्रम बनाकर तप किया तथा वहीं रहने लगे।

एक आश्रम महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अकोले में प्रवरा नदी के किनारे है। यहाँ महर्षि ने रामायण काल में निवास किया था। माना जाता है कि उनकी उपस्थिति में सभी प्राणी दुश्मनी भूल गये थे।

मार्शल आर्ट में योगदान
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आज हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को पूर्ण रूप से भूल चुके हैं | जिस संस्कृति को हम लोग भूल रहे हैं और जिन मूल्यों को हम को चुके हैं उनको अपनाकर अनेकों देश आज विकसित अवस्था में हैं और हम क्या हैं आप समझ रहे होंगे | आज जिस मार्शल आर्ट की कला को हम सीखने के लिए लालायित रहते हैं उसके बारे में हम यही सोचते हैं की यह तो चीन की देन है, जबकि हकीक़त इसके उल्ट है | इस कला का ज्ञान चीन ने नहीं बल्कि चीन के साथ पूरे विश्व को हमने दिया था | लेकिन विडम्बना यह है कि इस विद्या के जन्मदाता का नाम ही हमने आज तक नहीं सुना |



पश्चिमी दुनिया के अन्य देशों में मार्शल आर्ट को चर्चित करने का श्रेय काफी हद तक ब्रूस ली को दिया जाता है। बाद में 1960 और 1970 के दशक में मार्शल कलाकार और हॉलीवुड अभिनेता ब्रूस ली से प्रभावित मीडिया की दिलचस्पी मार्शल आर्ट के प्रति देखी गई । एशियाई और हॉलीवुड मार्शल आर्ट फिल्मों को भी आंशिक रूप से इसका श्रेय दिया जाता हैं । जहां जैकी चेन और जेट ली जैसे प्रख्यात फिल्मी हस्तियों को हाल के वर्षों में चीनी मार्शल आर्ट को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।

मार्शल आर्ट में सबसे अच्छी विद्या मानी जाती है कुंग्फु और इसको सिखाने का सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता है चीन में स्थित "सओलिन मन्दिर" । आपको यह जानकार बेहद आश्चर्य होगा कि इस विद्यालय की आधारशिला रखने वाले और चीन को इस कला का ज्ञान देने वाले भारतीय थे | उस भारतीय का नाम था – "बोधिधर्मन ” |

बोधिधर्मन से भी पूर्व इस विद्या के जनक महर्षि अगस्त्य माने जाते हैं ।

महर्षि अगस्त्य केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की दक्षिणी शैली वर्मक्कलै के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। वर्मक्कलै निःशस्त्र युद्ध कला शैली है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने अपने पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) को यह कला सिखायी तथा मुरुगन ने यह कला अगस्त्य को सिखायी। महर्षि अगस्त्य ने यह कला अन्यों को सिखायी तथा तमिल में इस पर पुस्तकें भी लिखी। महर्षि अगस्त्य दक्षिणी चिकित्सा पद्धति 'सिद्ध वैद्यम्' के भी जनक हैं।

आइये पश्चिमी विद्वानों द्वारा फैलाए गये झूठ को दुनिया के सामने रखे । ज्यादा से ज्यादा शेयर करके हर एक भारतीय तक पहुँचाये ।



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